Tuesday, November 18, 2025
Google search engine
Homeपर्यावरणहिमालय में हर साल पहुंच रहा चार अरब कारों जितना धुआं

हिमालय में हर साल पहुंच रहा चार अरब कारों जितना धुआं

मध्य हिमालय में कार्बन डाई आक्साइड और मीथेन गैस बढ़ने से पिघल रहे ग्लेशियर

देहरादून, दीपक पुरोहित: Global Warming
पिछले कुछ महीनों से आप सोशल मीडिया पर लगातार glacier break और पहाड़ों से अचानक आई flash floods के वीडियो देख रहे होंगे। उत्तराखंड, हिमाचल और कश्मीर से आने वाली ये आपदाएँ सिर्फ़ इत्तेफ़ाक़ नहीं हैं। वैज्ञानिकों ने अब इसका असली कारण खोज निकाला है। एक ताज़ा scientific research में सामने आया है कि मध्य हिमालय यानी Central Himalaya की हवा में पिछले पाँच सालों में greenhouse gases कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) और मीथेन (Methane)—खतरनाक स्तर तक बढ़ चुकी हैं। Global Warming

भारत ने एआई हथियार सिस्टम तैयार किया उत्तराखंड की कंपनी ने रचा इतिहास

वैज्ञानिकों का कहना है कि इन गैसों का इज़ाफ़ा ऐसा है जैसे हर साल साढ़े चार अरब कारों से निकलने वाला धुआँ या पंद्रह सौ ट्रिलियन सिगरेट जलाने के बराबर ज़हर हिमालय की हवा में घुल रहा हो। यही कारण है कि इस क्षेत्र का तापमान लगातार बढ़ रहा है और ग्लेशियरों की पिघलने की दर (melting rate) लगभग डेढ़ फ़ीसदी तक बढ़ गई है।

नैनीताल स्थित Aryabhatta Research Institute of Observational Sciences (ARIES) ने इस राज़ को खोला है। वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. मनीष नाजा की टीम ने 2014 से 2018 तक हाई-रेज़ोल्यूशन डेटा इकट्ठा किया। इस अध्ययन में पाया गया कि कार्बन डाइऑक्साइड हर साल औसतन 2.66 ppm बढ़ रही है, जबकि मीथेन का स्तर 9.53 ppb तक पहुँच गया है। Climate scientists का मानना है कि ये वही गैसें हैं जो वातावरण में global warming को और तेज़ करती हैं। Global Warming

इन गैसों का असर सीधे हिमालय के ग्लेशियरों पर दिख रहा है। जम्मू-कश्मीर, हिमाचल और उत्तराखंड में हाल ही में बार-बार झीलें फटी हैं, पुराने गधेरे अचानक बह निकले और नदियाँ उफान पर आ गईं। यह सब कोई प्राकृतिक संयोग नहीं बल्कि एक climate change pattern है। इसकी जड़ में हैं इंसानी गतिविधियाँ—शहरों का प्रदूषण, गाड़ियों का धुआँ, जंगलों का जलना और अंधाधुंध निर्माण। यही कारण है कि वैज्ञानिकों ने इसे हिमालय की “साँसें घुटने” जैसा हाल बताया है।

शोध यह भी बताता है कि ये greenhouse gases सिर्फ पहाड़ों में नहीं बन रहीं। दिन की गर्म हवाएँ (hot winds) मैदानों से प्रदूषण खींचकर ऊपर ले जाती हैं। तराई के खेतों में बायोमास जलाना (biomass burning), जंगलों की आग और बड़े पैमाने पर हो रही पेड़ों की कटाई भी इस संकट को और गहरा कर रही है। इसका नतीजा यह है कि जहाँ कभी ऊँचाई वाले इलाकों में सिर्फ बर्फ़ गिरती थी, अब वहाँ बारिश होने लगी है। Global Warming

Climate data साफ दिखाता है कि हिमालय की snow line यानी स्थायी बर्फ़ की रेखा अब 50 मीटर पीछे खिसक चुकी है। पहले इन ऊँचाई वाले इलाकों में बारह महीने हिमपात होता था, लेकिन अब सिर्फ तीन महीने बर्फ़ गिरती है और बाकी नौ महीने बारिश होती है। यह छोटा सा बदलाव गंगा और यमुना जैसी नदियों के बहाव से लेकर पूरे उत्तर भारत की जल आपूर्ति को हिला सकता है।

हिमालयी मौसम का यह बदलाव सीधा असर हमारे जीवन पर डालेगा। सबसे पहले agriculture sector पर दबाव पड़ेगा। बढ़ते तापमान और अनिश्चित monsoon फसलों की पैदावार घटा देंगे, खासकर धान और गेहूँ जैसी मुख्य फसलें प्रभावित होंगी। जब खेती पर असर होगा तो अर्थव्यवस्था डगमगाएगी और employment opportunities कम होंगी। आपदाएँ बढ़ने से सड़क, पुल और अन्य infrastructure को भारी नुकसान होगा। Global Warming

New Human Skeletons cave Discovered on India-Nepal Border

यानी, हिमालय में हो रहा climate change सिर्फ़ बर्फ पिघलने की कहानी नहीं है। यह भारत की food security, economy, jobs और आम लोगों की रोज़मर्रा की ज़िंदगी के लिए सीधा खतरा है। वैज्ञानिक साफ चेतावनी दे रहे हैं कि अगर यह ट्रेंड जारी रहा तो आने वाले सालों में हिमालय की आपदाएँ और ज़्यादा घातक होंगी। Global Warming

RELATED ARTICLES

Most Popular