श्रीनगर, गढ़वाल: उत्तराखंड की सांस्कृतिक चेतना को संजीवनी देने वाले एक अनूठे आयोजन की गूंज रविवार को श्रीनगर के चौरास परिसर में सुनाई दी, जहां “धरोहर संवाद 2025” का भव्य शुभारंभ हुआ। संस्था अपनी धरोहर न्यास द्वारा आयोजित इस राज्य स्तरीय साहित्य एवं सांस्कृतिक सम्मेलन में प्रदेश के कोने-कोने से संस्कृति प्रेमी जुटे और उत्तराखंड की विरासत को सहेजने का संकल्प लिया।
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कार्यक्रम का मुख्य आकर्षण रहे वे संवाद सत्र, जिनमें नौले-धारे, परंपरागत तीर्थ यात्राएं, लोक कलाएं, सामुदायिक स्मृतियां और संगीत जैसे तत्वों के संरक्षण पर गहन विमर्श हुआ। वक्ताओं ने इस बात पर चिंता जताई कि यदि अभी ठोस पहल नहीं हुई तो आने वाली पीढ़ियां इन लोकधरों से पूरी तरह कट जाएंगी।
कार्यक्रम में उपस्थित कैबिनेट मंत्री डॉ. धन सिंह रावत को आयोजकों ने 11 सूत्रीय मांगपत्र सौंपा, जिसमें संस्कृति संरक्षण की दिशा में ठोस नीतिगत कदम उठाने की मांग की गई। मंत्री डॉ. रावत ने इस पहल की सराहना करते हुए कहा, “उत्तराखंड की सांस्कृतिक आत्मा को सिर्फ किताबों तक सीमित नहीं किया जा सकता, इसे मंचों, उत्सवों और युवाओं के दिलों तक पहुंचाना होगा।”
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विधायक विनोद कंडारी ने भी जमीनी स्तर पर विरासत को संरक्षित करने की जरूरत बताई, वहीं न्यास के अध्यक्ष विजय भट्ट ने कहा, “नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ना अब एक आंदोलन की शक्ल ले चुका है।”
संस्कृति संरक्षण की दिशा में कार्यरत वरिष्ठ लोककर्मी प्रो. डीआर पुरोहित ने इस अवसर पर संस्कृति को लेकर अलग नीति बनाने की मांग दोहराई। सम्मेलन के दौरान सूर्यप्रकाश सेमवाल की पुस्तक “अपनी धरोहर” का भी लोकार्पण हुआ, जिसने इस आयोजन को साहित्यिक ऊंचाई प्रदान की।
कार्यक्रम का संचालन वरिष्ठ पत्रकार सुधीर जोशी ने किया। मंच पर यूकॉस्ट के महानिदेशक डॉ. दुर्गेश पंत, लोक इतिहासकार एलपी जोशी, लेखक नीलांबर पांडेय, और डॉ. नंद किशोर हटवाल जैसे विद्वान उपस्थित रहे, जिन्होंने आयोजन को विचारों और सुझावों से समृद्ध किया।
“धरोहर संवाद 2025” न सिर्फ एक आयोजन रहा, बल्कि यह एक सांस्कृतिक उद्घोष था – उत्तराखंड की आत्मा को फिर से जगाने की एक कोशिश, जो शायद आने वाले समय में एक जनांदोलन में बदल जाए।