Wednesday, December 11, 2024
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उत्तराखंड में 206 साल पुरानी राजस्व पुलिस खत्म होगी… Revenue Police History

नैनीताल: Uttarakhand Revenue Police उत्तराखंड में 206 साल पुरानी राजस्व पुलिस Revenue Police अगले एक साल में खत्म हो जाएगी। क्योंकि उत्तराखंड हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को एक साल के भीतर राजस्व पुलिस व्यवस्था को खत्म करने के आदेश दे दिए हैं। उत्तराखंड में पटवारियों को पुलिस के अधिकार देकर Revenue Police बनाने की व्यवस्था अंग्रेजों ने शुरू की थी, जो कि आज तक चली आ रही है।

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कमिशनर George William Trail ने शुरू की थी व्यवस्था

1815 में गोरखाओं को अंग्रेजों ने युद्ध में हरा दिया। युद्ध के बाद अंग्रेजों ने पश्चिमी गढ़वाल का हिस्सा राजा Sudarshan shah सुदर्शन शाह को सौंप दिया। जहां टिहरी रियासत बनी। पर पूर्वी गढ़वाल पर खुद कब्जा रखा। कुमाऊं का हिस्सा भी चंद राजाओं को ना देकर ईस्ट इंडिया कंपनी के अधीन कर लिया। इतिहासकार प्रो. अजय रावत ने अपनी पुस्तक Political History of Uttarakhand में अंग्रेजों द्वारा लागू शासन व्यवस्था पर विस्तार से बताया है। उनके अनुसार 1818 में कुमाऊं के कमिशनर George William Trail ने सबसे पहले Revenue Police व्यवस्था बनाई। चूंकि पहाड़ी इलाके में आबादी कम थी और अपराध भी बेहद कम होते थे। इसलिए खर्चा बचाने के लिए अंग्रेजों ने यहां पुलिस व्यवस्था लागू नहीं की। इसके बजाए पटवारियों को ही पुलिस की शक्ति देकर Revenue Police व्यवस्था लागू कर दी।

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पहली बार नौ पटवारियों की भर्ती हुई

1819 में पहली बार नौ पटवारियों की नियुक्ति की गई। जिन्हें राजस्व पुलिस का काम भी दिया गया। Revenue Police के पास भू-राजस्व एकत्र करना, गांव के झगड़े निपटाना, किसी घटना या प्राकृतिक आपदाओं की रिपोर्ट पटवारी, तहसीलदार के जरिए आगे भेजना था। यह व्यवस्था आज तक उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में चल रही है। अंग्रेजों द्वारा किए गए बंदोबस्त के आधार पर ही आज भी हमारी जमीनों के बंदोबस्त किए जा रहे हैं। Uttarakhand Revenue Police

देश में केवल उत्तराखंड में रही राजस्व पुलिस व्यवस्था

अंग्रेजों ने पूर्वी गढ़वाल से लेकर कुमाऊं के पूरे हिस्से को Special Status दिया था। इसलिए यहां देश के बाकी हिस्सों के नियम लागू नहीं होते थे। इतिहासकार Prof Ajay Rawat के अनुसार देश में केवल ब्रिटिश गढ़वाल व कुमाऊं ही एकमात्र इलाका रहा जहां राजस्व पुलिस की व्यवस्था लागू थी।

प्रधान का बेटा प्रधान बनता था

गांव में प्रधान की परंपरा अंग्रेजों से पहले की है। उस समय चुनाव की व्यवस्था नहीं थी। गांव में प्रधान का बेटा ही प्रधान बनता था। इसी तरह कई बार पटवारी के बेटे या परिवार के सदस्य को ही पटवारी या Revenue Police के रूप में तैनात कर दिया जाता था। कमिशनर ट्रेल ने सात बर भूमि बंदोबस्ती करवाई। जिसके आधार पर ही कुमाऊं के क्षेत्र तय हुए। इसी बंदोबस्ती के आधार पर ही आज भी कुमाऊं के भू-अभिलेखों का काम होता है।

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